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Tuesday, February 15, 2011

घड़ी भर को ठहर जा...


घड़ी भर को ठहर जा .. 

अब के जब चंद लम्हों में  
तेरे सीने से लग जाऊँगा, 
मेरे महबूब दुनिया की हर शै, 
सिर्फ़ तेरे लिए छोड़ जाऊँगा. 
आज के बाद फिर कभी - 
ना मिल सकूँगा, मैं उन्हे- 
जिन्होने मुझसे बेपनाह 
मोहब्बत की है, 
जिन्होंने मेरी हर बात को 
अपनी पलकों पे सजाए रखा 
मेरी खुशियों के लिए अपने 
अश्कों को छुपाए रखा, 
इतनी ज़ल्दी में मैं तेरे पीछे आया 
के उनको आख़िरी सलाम कर भी ना सका, 
जिन्होने मेरी खातिर क्या क्या ना किया 
मैं उनका एहतराम कर भी ना सका, 
घड़ी भर को ठहर जा मेरे महबूब ! 
के एक नज़र उनको मैं देख तो लूँ 
अपने अंजाने सफ़र के लिए, उनकी यादों को 
अपने सीने में ज़रा समेट तो लूँ, 
तू ! मेरी महबूब है मगर 
मुझे उनसे भी तो मोहब्बत है, 
मैं जनता हूँ के तेरे दामन में 
वस्ल की राहत है, मगर 
जो छूट रहा है वो 
राहत वस्ल से कमतर भी नहीं, 
तेरे हुस्न की रानाईयों से 
वाक़िफ़ हूँ मगर 
जो छोड़े जा रहा हूँ वो 
किसी ज़न्नत से कम भी तो नही, 
घड़ी भर को ठहर जा मेरे महबूब ! 

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