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Thursday, December 29, 2016





उम्रभर  हर रिश्ते को  आज़माता रहा
ज़िन्दगी अब मुझको आज़माने लगी है।

क़ारोबार ए इश्क़ में अव्वल रहे हरदम
थक गया हूँ अब नींद भी आने लगी है।

जिनको हमने  नाक़ाबिल ए दोस्ती समझा
दुनियां उनकी दोस्ती की क़समें खाने लगी है।

बड़ी तबीयत से बनायी गयी थी इक मूरत
वक़्त से पहले ही दरार इसमें आने लगी है।

सूरज-चाँद-सितारे अब मिरे किस काम के
रौशनी आँखों की मिरी  अब  जाने लगी है।

ता-उम्र भटकते रहे जिन सहराओं में 'जाहिल'
दुनियां आजकल वहाँ चार-दिन गुज़ारने लगी है।