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Friday, May 25, 2012

मैं तनहा हूँ इन दिनों मगर

मैं तनहा हूँ इन दिनों  मगर ..
ये भरम है के तुम भी मेरे साथ हो

किसी बात पे ख़फा के एक बात पे हँसना
लगता है जैसे कल की ही बात हो

आसाँ नहीं था तुमसे बिछड़ के ज़िंदा रहना
हम पी गये ये ज़हर भी गोया आबे-हयात हो

तिरे ही जानिब हम ये सोचते हैं अक्सर
तू ही सुबहे ज़िंदगी और मौत की रात हो

मत पूछिए अब हमसे हमारा हाले दिल
इक तन्हा गोरे ग़रीबा औ अमावस की रात हो

भरोसा तो दे रहे हो दिले मासूम डर रहा है
ऐतबार कैसे कर लें तुम आदम की जात हो

हम जी रहें हैं "जाहिल" सिर्फ़ इसी उम्मीद में
किसी मोड़ पे उनसे बस इक मुलाक़ात हो