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Sunday, February 13, 2011

....एक बार......


....एक बार...... 
 
जिस कलम से- 
तुम्हारे लिए बेहिसाब 
नज्मे लिखी,नग्मे लिखे, 
 
तुम्हारे साथ ने ही तो मेरी 
क़लम की स्याही को 
गीली बनाए रखा. 
 
आज के जब तुम नही हो 
मेरे साथ, 
पता नही कहाँ? ये मालूम होता 
मुझे काश! 
 
अब मेरे क़लम की स्याही भी 
सूख चुकी है, 
अब काग़ज़ भी कोरा रह जाता है 
हर बार, 
 
काश ! के फिर से लिख सकता .. 
"तुम्हारा नाम" 
.......................एक बार...........  

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