देखता हूँ जब मैं लोगों के हंसते हुए चेहरे
याद आते हैं मुझे उनके रोते हुए चेहरे,
दिल से निकल के वो कहीं आँखों में छुपा है
सीने में समंदर है मगर उठती नही लहरें,
साहिल पे बैठे बैठे रात भी टपक रही है
उतर गया है वो शक्स शायद पानी कहीं गहरे,
आज़ाद हो गये हैं वो जो ता-उम्र क़ैद थे
उठ गये हैं ज़ींदो पे लगे हुए पहरे.
याद आते हैं मुझे उनके रोते हुए चेहरे,
दिल से निकल के वो कहीं आँखों में छुपा है
सीने में समंदर है मगर उठती नही लहरें,
साहिल पे बैठे बैठे रात भी टपक रही है
उतर गया है वो शक्स शायद पानी कहीं गहरे,
आज़ाद हो गये हैं वो जो ता-उम्र क़ैद थे
उठ गये हैं ज़ींदो पे लगे हुए पहरे.
No comments:
Post a Comment