नयी कविता .... "सांझा सुख"
आज इतने सालों बात भी तुम्हारे साथ की गयी बातें ज्यों की त्यों याद हैं. ऐसे लगता है जैसे वा एक काल-खंड, ईश्वर के साथ की गयी बातों का था./ क्योंकि ईश्वर से भी हम यही चाहते हैं की उसका स्मरण हमें सुख दे/ फिर ईश्वर तो एक कल्पना मात्र है, उसे किसी ने देखा नही होता. जबकि मैने तुम्हें सिर्फ़ देखा ही नही खूब बातें भी की हैं,साथ घुमा भी हूँ/ उन बातों को याद करके, उन जगहों पे जाकर जहाँ घूमें थे,मुझे तुम्हारी तरह आज भी याद आता है तो सिर्फ़ इसी लिए कि उन जगहों को मैं आज भी छू सकता हूँ, देख सकता हूँ, जो हमारे उस छोटे से सांझा सुख की साक्षी है...
No comments:
Post a Comment