उम्रभर हर रिश्ते को आज़माता रहा
ज़िन्दगी अब मुझको आज़माने लगी है।
क़ारोबार ए इश्क़ में अव्वल रहे हरदम
थक गया हूँ अब नींद भी आने लगी है।
जिनको हमने नाक़ाबिल ए दोस्ती समझा
दुनियां उनकी दोस्ती की क़समें खाने लगी है।
बड़ी तबीयत से बनायी गयी थी इक मूरत
वक़्त से पहले ही दरार इसमें आने लगी है।
सूरज-चाँद-सितारे अब मिरे किस काम के
रौशनी आँखों की मिरी अब जाने लगी है।
ता-उम्र भटकते रहे जिन सहराओं में 'जाहिल'
दुनियां आजकल वहाँ चार-दिन गुज़ारने लगी है।