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Saturday, December 29, 2012

वह स्तब्ध थी//







अनादि काल से..
दोनो के बीच जो रेखा थी
उसे पुरुष ने ही तो मिटाया था,
उसे अनुचरी से सहचरी बनाया था.

उसी पुरुष के लिए तो उसने देश-काल की
समकालीन परम्पराओं का प्रतिकार किया,
उसी का साथ पाकर पुरुष ने संबंधों के
नये क्षितिजों का आविष्कार किया/
वो पुरुष की अवसरवादी प्रकृति से
तो परिचित थी, फिर भी उसी की
अनुकृति को बारंबार सृजित किया,
हर पग पर हार को अंगीकार कर
हर क्षण उसको अविजित किया /

उसी पुरुष के द्वारा दोनो के बीच
एक बार पुनः सीमा रेखा खीच दिए जाने पर
वह स्तब्ध थी//